निरुपमा शर्मा: असहाय लोगों की सेवा व मदद
निरुपमा शर्मा जी एक बेहतरीन लेखिका व कवयित्री भी हैं। कई बच्चों को बाल श्रम से मुक्त करवा उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया। तन-मन-धन से इन्होंने असहाय लोगों की सेवा व मदद की। आज इनसे कई असहाय बच्चे व महिलाएं लाभान्वित हो रही हैं।
महिला दिवस पर सभी के विचारों को जानकर पढ़कर अच्छा लगा। हममे से कई अपने विचारों के साथ आत्मसात करती नज़र आती हैं। पर, कई बार कुछ विचार अक्षरों में गुम होकर रह जाते हैं। कई बार महिला दिवस पर नारी शशक्तिकरण वाली मृगमरीचिका विस्मित भी करती है।
हालांकि, सोच पॉजिटिव हो तो मार्ग प्रशस्त करने में ज्यादा का फासला नही होता है। इसलिए, कल मैंने नारी जीवन को रंगों से जोड़कर उसपर विचार बनाये क्योंकि जीवन भी रंगों से भरा है और हर रंग कुछ कहता है। आज आप सभी को ऐसी ही बेहद पॉजिटिव सोच रखने वाली महिला से रूबरू करवाती हूँ। जिनका जीवन, कई संघर्षों के बावजूद दूसरों के सानिध्य को भी अपनी पॉजिटिव एनर्जी से बूस्ट-अप करता हैं।
निरुपमा शर्मा: बहुआयामी व्यक्तित्व: कई गुणों से परिपूर्ण निरुपमा शर्मा जी… रिटायर्ड पुलिस अधिकारी विजय शर्मा जी, जो मूलतः उत्तर प्रदेश के तिलोली गाँव से हैं, की धर्मपत्नी हैं। हमारे समाज की एक योग्य महिला हैं। कई सामाजिक संस्थानों से जुड़कर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। पतंजलि योग पीठ से जुड़कर इन्होंने योग शिक्षिका की ट्रेनिग ली और योग शिक्षिका के साथ वहाँ महिलाओं की अध्यक्ष भी हैं। धार्मिक सहिष्णुता वाले विचारों को रखते हुय, कई भजन-कीतर्न वाले संघठनो से भी जुड़ी हैं। सेवा संस्कार भारती में 10 वर्षों से नेतृत्व कर रही हैं। पंजाब साइन्स कायनात से जुड़कर कई वर्ष महत्वपूर्ण योगदान समाज को दिया है। कई सामाजिक संगठनो से जुड़कर इन्होंने देश में आपदा आये क्षेत्रों के लोगों को रूपये व् जरुरत के सामन मुहैया करवाये हैं। इन्हें इनके सराहनीय कार्यों के लिये अक्सर सम्मानित भी किया गया है।
फ्लैशबैक: निरुपमा जी, मूलतः भरथुआ (मुजफ्फरपुर, बिहार) के मूलनिवासी रहे स्व. काशीनाथ भट्टजी की तृतीय सुपत्री हैं। बचपन से ही मेधावी कर्मठ व योग्य बौद्धिक क्षमता की वजह से इनकी एक अलग छवि रही। पढ़ाई, संगीत में रुचि, कलात्मकता से अतिशय लगाव के अलावा किसी से भी उसके अच्छे गुणों को सहेजने की सुंदर प्रवृति थी। प्रारम्भिक शिक्षा कोलकाता में हुई फिर आगे की पढ़ाई पटना से हुई।
बचपन में ये अपने पिता के बेहद करीबी थी। अक्सर उनके लेखन कार्य में रुचि लेती कि इस बार बाबूजी ने क्या लिखा। बाबूजी के लेखनकार्य के प्रोत्साहन को लेकर आने वाली चिट्ठियों को ये अक्सर उन्हें पढ़कर सुनाती थी।…लेखन के प्रति रुचि भी इनकी इसी वजह से बाल्यकाल से समाहित हुई। इनके लेख और कविताओं को भी अखबारों में स्थान मिलने लगा। सबसे पहले इन्होंने अपनी दादी के विषय में एक प्यारी कविता लिखी। उस वक़्त कम उम्र में ब्याह का चलन था, तो नियमानुसार पढ़ाई अधूरी रहते ही इनका विवाह दूर फ़िरोजपुर, पंजाब में हो गया।

तत्कालीन, ये पूर्णतः अपने जीवन की दूसरी पारी और उसके अनुभवों को सहेज रही हैं। इनदिनों सामाजिक क्रियाकलापों से दूरी है किंतु, ब्रह्मभट्टवर्ल्ड में इनकी खास रुचि रहती है। अक्सर ब्रह्मभट्ट वर्ल्ड से जुड़े स्वजनों और उनके कार्यों की खुलकर सराहना करती हैं।
हमसे से कई इनसे इस वर्ष राँची-मन्थन में भी रूबरू हुए, जहाँ कई इनसे मिलकर बेहद प्रभावित भी हुए।
आगे भी इनकी इक्छा है कि, अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों से समय मिलने पर ब्रह्नभट्ट वर्ल्ड और उसके सराहनीय कार्यों में पूर्ण सहभागी बनेंगी।
आज महिला दिवस पर मुझे अपनी मौसी, (“मासी को माँ जैसी”) कहते हैं, के बारे में कुछ अल्फाज बयान करने को मिला… महिला दिवस पर बड़ी खुशी मेरे हिस्से आई है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
Comments on BBW group on facebook:
Sangita Roy आपके लेखन के द्वारा अपने समाज की एक बहुआयामी व्यक्तित्व वाली महिला के बारे मे जानकारी मिली।
Rakesh Sharma: आपके बारे में विस्तृत रुप से जानकर बहुत खुशी हुई।आपने हमेशा से अपने ओजस्वी लेख कमेंट तथा कविताओं से इस समुह का मान और प्रतिष्ठा बढाया है तथा आपके बारे मे विस्तृत रुप से जानकारी देकर हमारे कुशल एडमिन प्रियंका जी ने अपने लेखन का लोहा मनवाया है।आप जैसे लोग ही अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस और महिला सशक्तीकरण के मिशाल हैं।आपसभी को इस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
Ajay Rai समाज को गर्व है इनपर , अंतरास्ट्रीय महिला दिवस पर बधाई सबको
Deorath Kumar: बहुत सुंदर लिखा आपने, राँची मंथन में निरुपमा जी से मिलकर बहुत अच्छा लगा और इनमें माँ की छवि दिखी
Ranjeeta Kumari नीरू दी के विषय में तुमने बिलकुल सही लिखा , मै भी तो उन्हें बचपन से जानती हूं
Roy Tapan Bharati: नीरू दीदी पर priyanka ने एकदम सही लिखा। वह महिलाओं में एक मिसाल हैं, वे अनेक गुणों से संपन्न हैं। संघर्ष के बीच भी वह बच्चों की अच्छी और कर्मठ मार्गदर्शक हैं। अभिनंदन।
Amita SharmaAmita:निरुपमा मौसी से मिलकर बहुत अच्छा लगा था।मैं उनसे पहली बार राँची मंथन में मिली थी,लगा जैसे बरसो से जानती हूँ।बहुत ही मिलनसार और भावुक हैं।
Nirupma Sharma: प्रियंका आपकी लेखनी तो कमाल है। और बहुत अच्छा लगा कि मेरे विषय में मेरे बच्चे इतनी गहराई से सोचते हैं, बेटा मुझे भी मंथन में बहुत अच्छा लग रहा था जब मुझे लोग कह रहे थे कि ये प्रियंका की मौसी हैं।और इससे बड़ी उपलब्धि क्या हो सकती है जब आप को लोग आपके बच्चों के नाम से पहचाने। आप का लेख पढ़कर बाबूजी की याद आ रहीहै। Brahmbhattworld से जो प्यार और अपनापन मिला उसे शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है,और तपन भाई साहब ने जो ब्रह्मभट्टवर्ल्ड के जरिए महिलाओं के व्यक्तित्व को उभरने का जो मौका दिए है, उसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूं। बेटा आपकी लेखनी शैली को बहुत बहुत आशिर्वाद निरंतर बढ़ती रहे और आप सदैव नेक कार्यो में अग्रसर रहो । महिला दिवस की पुनः बधाई आप सभी को।
Niteshwar Prasad Rai महिला दिवस पर देश के तमाम महिलाओ को मुवारकवाद
Deorath Kumar: आप दोनों ने जो प्यार दिया उसे शब्दों में नहीं व्यक्त कर सकता
Geeta Bhatt: प्रियंका जी एकदम सही लिखा आपने । उनको देखने और मिलने के बाद अच्छा अनुभव हुआ ।
Urmila Bhatt: निरूपमा शर्मा उर्फ़ (नीरू दी), आज इनके बारे में इतनी अच्छी बातें पढ़कर अच्छा लगा।
नीरू दी मेरी ननद की जिठानी जी हैं । इनसे मैं 1989 में अपनी ननद की तिलक में फिरोजपुर में मिली थी।फिर मैं इनसे दुबारा 2006 में बरेली में मिली। तब तक हमारा आपस में यही परिचय था कि मेरा ससुराल और इनका मायका एक ही गाँव में है।
ब्रह्मभट्टवर्ल्ड अपनों से अपनों को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है।मैं भी तपन सर का शुक्रिया करना चाहूँगी जिन्होंने हम स्वजातीयो के लिए एक ऐसा मंच दिया है जहाँ कितने ही ऐसे अपने मिलें जिनका नाम ही सुने थे।
इसी कड़ी में पटना मंथन में प्रियंका जी से मुलाकात हुई और बातों बातों में पता चला कि नीरूदी, इनकी मौसी हैं ।और इस लेख के द्वारा उनके द्वारा सामाजिक क्रियाकलाप की इतनी सारी जानकारी मिली। राँची मंथन में फिर एक बार नीरू दी से मिलने का मौका मिला।और यह सिलसिला लगातार जारी रहे।
Arundhati Sharma: बहन नीरू के बारे में पढ़कर भावुक हो रही हूं। बचपन से ही समझदार और अच्छी सोच रखने वाली नीरू को, मैंने अपने ह्रदय में स्थान दिया है। जब मैं शादी के बाद पहली बार मायका आई तो अपनी नीरू को सलवार-कमीज में, पारिवारिक जिम्मेदारियों को और भी बखूबी निभाते देख , मैंने नीरू से कहा :-” तुम तो अब वाकई बड़ी और समझदार ही गई, और दोनों बहनें गले लग कर रोने लगे”….तबसे आजतक हम युहीं भावनाओं को व्यक्त करते आये हैं। नीरू में बाबूजी की झलक हमेशा महसूस होती है। दिल से हर अपने के साथ घुल-मिल जाना और उनके लिये अच्छी भावनाएं रखना यही नीरू की सबसे बड़ी पहचान है। ईश्वर तुम्हारे घर परिवार को हमेशा खुशियां से भरें, एक बडी बहन की यही दुआ है।